बिना वकील के आप खुद भी लड़ सकते हैं अपना मुकदमा, यह है प्रक्रिया
जब कोई व्यक्ति समस्याओं से घिर जाता है तो उसे न्यायालय से ही उम्मीद रहती है। वकीलों की बेतहाशा फीस के कारण आदमी अपने किसी भी मामले को न्यायालय में ले जाने से डरता है, लेकिन कानून में इतनी गुंजाइश है कि आप न्यायालय की अनुमति से अपना केस खुद लड़ सकते हैं।
अधिवक्ता अधिनियम के अंतर्गत आप बगैर अधिवक्ता हुए विधि व्यवसाय नहीं कर सकते परंतु स्वयं का मुकदमा लड़ सकते हैं, यह आपका नैसर्गिक अधिकार है। न्यायालय आपको अपना मुकदमा लड़ने से कतई निषिद्ध नहीं कर सकता।
आप न्यायालय में वक़ील स्वयं की इच्छा से नियुक्त करते हैं तथा मुकदमे के लिए वक़ील पत्र पर हस्ताक्षर करके वकील को अपने मुकदमे में प्रत्येक प्रकार के अधिकार सौंपते हैं।
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कभी कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियों का जन्म होता है जब आप को किसी आपराधिक मामलों में आरोपी बना दिया जाएं और राज्य द्वारा न्यायालय में आप पर कोई अभियोजन चलाया जा रहा है या फिर आपके किसी अधिकार के अतिक्रमण होने पर आप कोई सिविल मामला लेकर न्यायालय की शरण में जाते हैं। इनमें हर परिस्थिति में आपको वक़ील नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं है, न्यायालय आपको वक़ील नियुक्त करने हेतु विवश नहीं करता। वक़ील आपकी सुविधा के लिए आप खुद नियुक्त करते हैं।
भारतीय न्याय व्यवस्था बेहद तकनीकी है, जहां आपको पग पग पर वैधानिक जानकारियों की आवश्यकता होती है। इस परेशानी से व्यथित न हों, इसलिए आप न्यायालय में पैरवी के लिए वक़ील नियुक्त करते हैं।
आज हम चर्चा करेंगे उन बिंदुओं पर जिनकी सहायता से आप स्वयं भी खुद के मुकदमे में पैरवी कर सकते हैं। हालांकि यह बिंदु नितांत सटीक तो नहीं परन्तु फिर भी आपको स्वयं का मुकदमा लड़ने में ज़रूर सहायता करेंगे।
आपको अपना मुकदमा लड़ने के लिए केवल थोड़ा बहुत सामाजिक जानकारियों और साधारण तर्क पर ज्ञान हो और साथ ही कम से कम हिंदी भाषा में आप निपुण हों, ताकि अपनी बात को भाषा की सहायता से प्रभावी बना सकें। आइए जनाते हैं, क्या हैं वे बिंदु?
बेयर एक्ट ख़रीदें-
किसी भी अधिनियम पर बाज़ार में अलग अलग प्रकाशन संस्थाएं बेयर एक्ट प्रकाशित करती हैं। इनकी कीमत नाममात्र की होती है। आप बाज़ार से इन बेयर एक्ट को खरीद सकते हैं। इनकी भाषा भी कोई गूढ़ गहन नहीं होती है, परंतु उस ही शब्द को उपयोग किया जाता है जिस शब्द को विधायिका ने प्रयोग किया है।
आपराधिक मामले में-
यदि आप पर किसी आपराधिक मामले का अभियोजन चल रहा है तो आप सर्वप्रथम तीन अधिनियम की बेयर एक्ट खरीदें-
भारतीय दंड संहिता 1860
दंड प्रक्रिया सहिंता 1973
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872
भारतीय दंड सहिंता भारत की सीमा में अपराधों का निर्धारण करती है और उनके लिए दंड बताती है।
दंड प्रक्रिया सहिंता उन अपराधों में किस प्रकिया से व्यक्ति को दंड तक ले जाया जाएगा, इसका निर्धारण करती है।
साक्ष्य अधिनियम यह तय करता है कि किन साक्ष्यों को प्रकिया में शामिल किया जाएगा तथा कौन से एविडेन्स पर आरोपी को सज़ा दी जा सकती है।
यह तीनों अधिनियम किसी भी आपराधिक मामले में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। सारा मुकदमा इन तीनों के आधार पर ही पर ही संचालित किया जाता है।
न्यायाधीश से आज्ञा लेना-
आप न्यायाधीश से आज्ञा लेकर ही स्वयं के मुकदमे में स्वयं पैरवी कर सकते हैं, परन्तु न्यायाधीश आपको वकील नियुक्त करने का परामर्श दे सकते हैं। इस पर आप कह सकते हैं कि पुलिस कार्यवाही में मुझे खुद ही पैरवी करने की अनुमति दें तथा इतना समय दें कि मैं ड्राफ्टिंग इत्यादि कर सकूं।
अगर आप निरुद्ध हैं तो-
यदि आप किसी आपराधिक मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं और पुलिस ने आपको बंदी बनाया हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत पुलिस को आपको गिरफ्तार करने के चौबीस घंटों के भीतर किसी भी क्षेत्राधिकार के न्यायालय में पेश करना होगा।
जब आपको न्यायालय में पेश किया जाए तो आप पुलिस से अपनी एफआईआर की एक प्रति मांग सकते हैं। एफआईआर लेकर सबसे पहले उस घटना का विवरण पढ़ें फिर किन धाराओं में आपको निरूद्ध किया गया है यह जानकारी देखें तथा अपराध की सूचना देने वाला कौन व्यक्ति है यह नाम देखें।
पुलिस की गिरफ्तारी के बाद बंदी व्यक्ति स्वयं अपनी जमानत याचिका लगा सकता है। आरोपी को सबसे पहले एफआईआर से यह मालूम करना होगा कि किन धाराओं तथा अधिनियम के अंतर्गत मुझ पर प्रकरण दर्ज किया गया है तथा वह अपराध जमानतीय है या गैरजमानती है। जमानती अपराध में मजिस्ट्रेट और पुलिस द्वारा जमानत दे दी जाती है पर गैरजमानती अपराध की सूरत में जमानत देने या नहीं देना न्यायलय के विवेक पर निर्भर करता है।
न्यायालय से यह निवेदन करें कि पुलिस मुझे जमानत याचिका दाखिल करने के लिए थोड़ा समय दे। बाजार में सभी अभिवचनों के फॉर्मेट उपलब्ध होते हैं आप उन अभिवचनों को खरीद कर न्यायालय में अपनी जमानत याचिका लगा दें। याचिका बनाकर कोर्ट बाबू को दी जा सकती है, फिर मजिस्ट्रेट उस पर संज्ञान लेंगे।
यदि न्यायालय आपको जमानत पर छोड़ देता है तो किसी जमानतदार के सहयोग से आप पुलिस निरूद्ध से बाहर हो सकते हैं। पुलिस निरूद्ध से बाहर होकर आप उन धाराओं, उन अधिनियम को पढ़ें जिनके अन्तर्गत आपको आरोपी बनाया गया है।
विचारण के दरमियान-
जब आप पर आरोप तय हो जाएं और पुलिस द्वारा अपना अंतिम प्रतिवेदन (चालान) प्रस्तुत कर दिया जाए तो आप गवाहों का प्रतिपरीक्षण कीजिए। आपको न्यायलय के नकल विभाग में एक एप्लिकेशन लगाने पर बोर्ड पर रखी आपके मुकदमे को फाइल में लगे पुलिस के पेश किए चालान की नकल की सत्यप्रतिलिपि प्राप्त हो जाएगी।
चालान को अच्छे से पढ़ना-
चालान की नकल मिलने पर आप चालान को अच्छे से पढ़िए तथा किन किन गवाहों ने क्या क्या कथन किया है। इस पर मंथन कीजिए तथा ऐसे तर्क को जन्म दीजिए, जिससे आप गवाहों के दिये कथन को अपने विरुद्ध दिए कथन को अपने पक्ष में कर लें तथा अपने खिलाफ गए गवाहों को झूठा सिद्ध कर सकें।
सिविल मामले में-
सिविल मामले में अपना मुकदमा स्वयं लड़ना अपेक्षाकृत थोड़ा सरल होता है, क्योंकि यहां हमारे पास समय रहता है तथा हम पुलिस द्वारा निरूद्ध नहीं होते हैं। किसी भी सिविल मुकदमों में यदि आपको स्वयं मुकदमा लड़ना है तो सिविल प्रक्रिया सहिंता अच्छे से समझिए और यह देखिए कि आपके किस अधिकार का अतिक्रमण हो रहा है और वह अधिकार किस अधिनियम के अंतर्गत आ रहा है। जैसे अगर कोई संविदा विधि से संबंधित मामला है तो सबसे पहले भारतीय संविदा अधिनियम देखें।
कोई मामला राजस्व से संबंधित है तो अपने प्रदेश का राजस्व अधिनियम या कोड देखिए और उस पर गहन शोध करें। मामले की समस्त कार्यवाही सी पी सी के अंतर्गत ही कि संचालित की जाती है।
जहां तक संभव हो वहां तक आप अपने मुकदमे के लिए वकील नियुक्त करने का प्रयास करें क्योंकि वकील आपके महत्वपूर्ण मुकदमे में ठीक पैरवी कर सकते हैं। अपना केस खुद लड़ने का विकल्प आपातकालीन या फिर आर्थिक तंगी में प्रयोग किया जा सकता है लेकिन प्रयास करना चाहिए कि आपका मुकदमा कोई वकील ही देखे, क्योंकि यह संभव है सामने वाले पक्षकार द्वारा कोई वकील पैरवी के लिए खड़ा किया जाए।