यह हैं राज्य के सबसे प्रसिद्ध देवी मंदिर, मां के दर्शन मात्र से होती हैं सारी मनोकामनाएं पूरी
रायपुर. नवरात्रि के शुरू होते ही माता के मंदिरों और देवी पंडालों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं छत्तीसगढ़ के एेसे प्रसिद्ध देवी मंदिरों के बारे में जो प्रदेश में ही नही बल्कि पूरे देशभर में विख्यात हैं।
मां बम्लेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में पहाड़ों के ऊपर स्थित मां बम्लेश्वरी देवी का मंदिर देशभर में प्रसिद्ध हैं। हर साल नवरात्रि के मौके पर यहां मेला लगता है। प्रदेशभर से भक्त यहां माता के दर्शन करने और मनोकामना ज्योति कलश जलाने आते हैं। यहां मां सबकी मनोकामना पूरी करती हैं। नवरात्रि पर माता के भक्त यहां पदयात्रा कर भी पहुंचते हैं। मां बम्लेश्वरी देवी छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान हैं। जिनका इतिहास काफी पूराना हैं।
दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा जिले में स्थित मां दंतेश्वरी का मंदिर ५१ शक्तिपीठों में एक माना जाता है। मान्यता है कि माता सती का दांत यहां गिरा था इसलिए देवी को यहां पर दंतेश्वरी का रूप माना जाता है। इसलिए इस जगह का नाम भी दंतेवाड़ा पड़ा। यहां माता के दर्शन करने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। यहां मान्यता है कि आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना जल्द पूरी होती है।
दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित देवी की पाषाण काल निर्मित प्रतिमा स्थापित है। जो काले पत्थर से बनाई गई है, इसके साथ ही मंदिर में भगवान नरसिंह एवं नटराज की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर का निर्माण भव्य तरीके से किया गया है। मंदिर के पास ही पवित्र शंखिनी और डंकिनी नदियां बहती हैं।
चंडी माता मंदिर, महासमुंद
महासमुंद जिले के बागबहरा के पहाड़ पर स्थित है चंड़ी माता का मंदिर जो घुंचापाली के पहाड़ों पर स्थित हैं। इस मंदिर का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। कहा जाता है कि यहां चंडी माता की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई है। चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था।
इसके अलावा यह मंदिर और भी फेमस हैं यहां के भालूओं की वजह से यहां मंदिर प्रांगण में हर रोज आरती के वक्त भालू आते हैं जिन्हे माता का पहला प्रसाद खिलाया जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह भालू आकर्षण का केन्द्र होते हैं।
महामाया मंदिर, बिलासपुर
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर से २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है। त्रिपुरी के कलचुरियों की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया।
माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया। यहां प्रात: काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती है।
मां जतमई का मंदिर, जतमई-घटारानी
छत्तीसगढ़ में झरनों के बीच बसा मां जतमई का मंदिर रायपुर से ८० किमी की दूरी पर स्थित है। माता का ये मंदिर जंगल के बीचो बीच बसा हूआ है। मां के चरणों को छुकर बहती जलधाराएं यहां पर लोगों को आकर्षित करती हैं। कथाओं के अनुसार ये जलधाराएं माता की सेविकाएं हैं।